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________________ (१२) में प्रोति भोजन तथा प्रभावना आदि द्वारा सकल संघ को बहुमान दिया और याचकों को भी दान दिया। इस प्रसन्नता पर मेघ भी उमड़ आये और जोर जोर से बरसने लगे। यह झड़ी पांच दिन तक चलती रही। छटे दिन संघ ने कांगड़ा के पर्वतीय क्षेत्रों में कदम रखा और सघन झाड़ियों और ऊँची ऊँची चोटियों को पार करते हुए रास्ते में आने वाले गाँवों के लोगों से मिलते हुए उनके आचार विचार आदि का अनुभव करते हुए संघ विपाशा (व्यास) के तट पर पहुँचा उसे पार करके आगे बढ़ा और पातालगंगा नदी को भी पार करते हुए और रास्ते के पर्वतीय दृश्यों का आनन्द लेते हुए संघ ने दूर से, सोने के कलशों वाले प्रासादों की पंक्ति वाला नगरकोट जिसका दूसरा नाम सुमिपुर भी था, देखा। अपनी पुण्य-भूमि के दर्शन पाकर सभी यात्री गद्गद् हो उठे और नगरकोट के तट पर बहने वाली बानगंगा नाम की नदी को पार करने लगे। इतने में नगरकोट का श्रीसंघ जिसे यात्रा संघ के पहुँचने के समाचार प्राप्त हो गये थे बैंड बाजों के साथ स्वागत को आ पहुँचा और बड़े सम्मानपूर्वक जयजयकारों के साथ यात्रासंघ का नगर प्रवेश करवाया। नगर के सभी प्रसिद्ध बाजारों और मुहल्ला को लांघते हुए संघ सर्वप्रथम साधु क्षीमसिंह के बनवाये भगवान् श्री शान्तिनाथ के मन्दिर के सिंघद्वार पर पहुँचा और बड़े भक्तिभाव से श्री मन्दिर जी में प्रवेश कर खरतरगच्छ के श्री जिनेश्वर सूरि के करकमलों से प्रतिष्ठित हुई श्री शान्तिनाथ प्रभु की मनोहर मूर्ति के दर्शनों से आनन्द को प्राप्त हुआ और भगवान् के वन्दन स्तवन कीर्तन आदि द्वारा अपनी आत्मा को कृतार्थ किया । यहाँ से चलकर संघ कांगड़ा नगर के दूसरे जिनालय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034917
Book TitleKangda Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantilal Jain
PublisherShwetambar Jain Kangda Tirth Yatra Sangh
Publication Year1956
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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