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________________ (१०) उदारता दिखाई और सकल श्रीसंघ को उत्साहित किया। साथ ही आस पास के श्रीसंघों को भी यात्रा-संघ में सम्मिलित होने के निमन्त्रण पत्र भेजे गये और तैय्यारियाँ होने लगों । इन्हीं दिनों माबारषपुर, जहाँ जैनों के १०० घर थे, के श्रावक उपाध्याय जी को अपने गाँव में पधारने की विनति करने आये जिसे उचित समझ मुनिराजों ने कुछ दिनों के लिये माबारपपुर के लिये विहार कर दिया और वहाँ पर धर्म-देशना द्वारा जैन जैनेतर लोगों को धर्म का बोध कराते हुए कुछ दिन वहाँ ठहर कर वापिस फरीदपुर आ पहुँचे । माबारपपुर में आपने श्री आदिनाथ की प्रतिमा को प्रतिष्ठा भी करवाई थी जिस के उपलक्ष्य में सेठ हरिचन्द्र शिवदत्त ने स्वधर्मीवात्सल्य भी किया था। फरीदपुर पहुँचने पर तीर्थ यात्रा के प्रस्थान के लिये शुभ मुहूर्त निकलवाया गया और मंगल समय में यात्रा-संघ रवाना हआ। सेठ राणा के सुपुत्र सेठ सोमचन्द्र संघ का नेतृत्व कर रहे थे सभी यात्री लोग सानंद बढ़ते जा रहे थे । संघ की रक्षा निमित्त कुछ सिपाही भी साथ ले लिये गये थे जो कि तलवार, ढाल और तीर कमान आदि सुसजित शस्त्रों को उठाये सकल संघ की रक्षा कर रहे थे । सारा सामान बैल गाड़ियों पर लादा गया था और सवारी के लिये कुछ घोड़ा गाड़ियाँ भी साथ थीं। कितने ही धर्म प्रेमी लोग मुनिराजों के साथ साथ नंगे पांवों यात्रा का आनन्द उठा रहे थे । चलते चलते संघ विपाशा (व्यास) नदी के तट पर पहुंचा और रेतीले मैदान में अपना पहिला पड़ाव डाल दिया । दूसरे रोज नदी को पार कर संघ जालन्धर की ओर चला और निश्चिन्दीपुर पहुँच कर सरोवर के किनारे अपना पड़ाव डाल दिया। संघ को देख वहाँ पर सैंकड़ों मनुष्य इकट्ठे हो गये । गाँव का सुरत्राण (सुलतान) भी अपने दीवान समेत वहाँ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034917
Book TitleKangda Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantilal Jain
PublisherShwetambar Jain Kangda Tirth Yatra Sangh
Publication Year1956
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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