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________________ संवत् १४८४ का विशाल यात्रा-संघ मंगलं भगवान धर्मो मंगलं जिनशासनम् । मंगलं तन्मतः सङ्घो यात्रारम्भोऽति मंगलम् ।। श्री कांगड़ा महातीर्थ की इस यात्रा का वृत्तान्त प्रारम्भ करने से पहिले इसके अनुरूप कुछ उचित जानकारी का वर्णन करना आवश्यक जान पड़ता है जिस से आप यह जान सकेंगे कि यात्रा का यह कार्यक्रम क्यों और कैसे बना। आचार्य श्री जिनभद्र सूरि की आज्ञा लेकर श्री जयसागर उपाध्याय, मेघराजगणि. सत्यरुचिगणि, पं० मतिशीलगणि, और हेमकुञ्जर मुनि आदि अपने शिष्यों के साथ सिन्ध देश में गये । इधर उधर के गाँवों में विचरते टहरते संवत् १४८३ का चतुर्मास मम्मणवाहण नाम के नगर में किया । चौमासे बाद संघपति सीमाक के पुत्र सं० अभयचन्द्र ने मरुकोट्ट महातीर्थ की यात्रा के लिए संघ निकाला । उपाध्याय श्री जयसागर जी भी उस संघ के साथ गए। और यात्रा करके पीछे मम्मण वाहन में आये । इन दिनों फरीदपुर के श्रावक महाराज श्री को अपने नगर में पधारने की विनती करने मम्मणवाहन आये जो कि महाराज जी ने स्वीकार कर ली और वहाँ से विहार करके द्रोहडोट्ट आदि गाँवों में होते हुए फरीदपुर पहुँचे । वहाँ के संघ ने उपाध्याय जी का बड़े समारोह से नगर प्रवेश कराया । उपाध्याय जी प्रतिदिन व्याख्यान देने लगे। व्याख्यान इतना मनोरंजक होता था कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, आदि जैनेतर लोग भी आपके उपदेश से आनंद लेने लगे। आपका उपदेश इतना प्रभावशाली निकला कि कई जैनेतर लोग जैन धर्म में दीक्षित हो गये । एक दिन व्याख्यान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034917
Book TitleKangda Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantilal Jain
PublisherShwetambar Jain Kangda Tirth Yatra Sangh
Publication Year1956
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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