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________________ बड़े थे जो कि अच्छे विद्वान् थे । इनके और शिष्य भी योग्य और विद्वान थे जिन में सोमकुंजर, स्थिरसंयम और रलचन्द्र उपाध्याय विशेष उल्लेखनीय हैं। इन सब में अधिक विद्वान् थे श्री रत्नचन्द्र उपाध्याय जो उपाध्याय जी को लेखन कार्य में अच्छा सहयोग दिया करते थे। इन श्री रत्नचंद्र जी उपाध्याय की संतति में अच्छे अच्छे योग्य और विद्वान् मुनि हो गये हैं जिन में श्रीज्ञानविमल मुनि के परम विद्वान् शिष्य श्री वल्लभोपाध्याय विशेष उल्लेखनीय हैं। इनकी जैनशासन में अच्छी प्रतिष्ठा थी । आप की अनेकों कृतियों में से 'विजयदेव माहात्म्य' नाम का ग्रन्थ विशेष उल्लेखनीय है जिस से ज्ञात होता है कि वह गच्छवाद से परे रह कर विद्वान् महात्माओं की, भले ही वह किसी गच्छ के हों, प्रशंसा करने में कभी संकोच नहीं करते थे । इस ग्रन्थ में उन्होंने तपागच्छ के मान्य आचार्य श्री विजयदेव सूरि की बड़ी प्रशंसा की है। इस प्रकार संक्षेप से उपाध्याय श्री जयसागर महाराज की शिष्य परम्परा का यहां वर्णन किया गया है । उपाध्याय जी की रचनाओं और शिष्य परम्परा के वर्णन के पश्चात् श्री कांगड़ा तीर्थ की यात्रा के सिवा शेष तीर्थ स्थानों की नामावलि, जिन की आप ने यात्रा की थी, नीचे दी जाती है। ___ नगरकोट की यात्रा के पीछे उन्होंने इन स्थानों की यात्रा कीपाटन, वडली, रायपुर, महसाणा, कुणगेर, संखलपुर, धंधूका, शत्रुजय, तलाझा, दाठा, घृतकल्लोल, मेलिगपुर, अजाहर, दीव, ऊना, कोडीनार, प्रभासपाटन, वोर-वाड, वेरावल, मांगलोर, गिरनार, बलदाणा, चूडा, राणपुर, वीरमगाम, मांडल, सीतापुर, पाटरि, भिंभूवाडा, हांसलपुर । इन सभी तीर्थों की यात्रा पर लिखे क्रमानुसार की गई थी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034917
Book TitleKangda Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantilal Jain
PublisherShwetambar Jain Kangda Tirth Yatra Sangh
Publication Year1956
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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