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________________ उपाध्याय श्री जयसागर जी उपाध्याय श्री के जन्म-स्थान तथा माता पिता आदि के विषय में अभी तक किसी प्रकार से कोई जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी। आपके गुरु आदि और आपके कार्यों के सम्बंध में जो कुछ ज्ञान प्राप्त हो सका है वह इनकी अपनी लिखो तथा शिष्य आदिकों की लिखी हुई प्रशस्तियों का ही प्रताप है । आप ने अपने जीवन में अनेकों ग्रन्थों की रचना को और हजारों ग्रन्थों का पुनले खन करवाया था। आप ने कई तीर्थ स्थानों की यात्रायें कों जिनका वर्णन आर ने विज्ञप्ति-त्रिवेणि की एक प्रशस्ति में किया है। कांगड़ा तीर्थ की यात्रा का संक्षिप्त समाचार भी एक कविता में दिया गया है जो कि इस पुस्तक की स्तवनावली में दे दी गई है। ___ उपाध्याय जी की रचनाओं में से निम्नलिखित उल्लेखनीय हैं:'पृथ्वीचन्द्र चरित्र', 'पर्वरत्नावलि', 'संदेहदोलावलील घुटिका', उपसर्गहर-स्तोत्र-वृत्ति', गुरुपारतन्त्र्य-वृत्ति । 'पृथ्वीचन्द्र चरित्र' नामक ग्रन्थ की प्रशस्ति से यह पता चलता है कि आपके दोक्षा-गुरु खरतरगच्छ के प्राचार्य श्री जिनराज सूरि थे। आपके विद्या-गुरु आपके गुरु-भ्राता श्री जिनवर्धन सूरि थे और आप को उपाध्याय पदवी देने वाले थे आपके गुरु भ्राता श्री जिनभद्र सूरि जी महाराज जिन की सेवा में आप ने यह विज्ञप्ति-त्रिवेणि नामक पत्र मल्लिकवाहन नगर से अणहिल्लपुरपट्टन भेजा था । अनुमान है कि उपाध्याय पदवी प्रापको संवत् १४७५ में दी गई थी जब कि सागरचंद्राचार्य द्वारा श्री जिनवर्धन सूरि के स्थान पर जिनभद्रसूरि को नियुक्त किया गया था। ____ उपाध्याय श्री के शिष्य समुदाय में पं० मेघराज गणि सब से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034917
Book TitleKangda Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantilal Jain
PublisherShwetambar Jain Kangda Tirth Yatra Sangh
Publication Year1956
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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