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प्राचीन किला किसी समय कङ्गदक-कोट के नाम से पुकारा जाता था
और कङ्गदक-कोट का नाम बदलते बदलते कांगड़ा कोट के नाम की प्रसिद्धि पा गया। तब धीरे धीरे इसी कांगड़ा कोट के नाम पर इस नगर
और जिले का नाम भी कांगड़ा हो गया और आज तो इस क्षेत्र की पर्वत श्रेणियों को भी 'कांगड़ा के पहाड़' कह कर पुकारा जाता है परन्तु पूर्वकाल में इन पहाड़ियों को सपादलक्ष-पर्वत के नाम से याद किया जाता था। कांगड़े का जिला होश्यारपुर जिले के साथ मिलता है। होश्यारपुर जिले में फैली हुई पर्वत श्रेणियों को शिवालक के नाम से याद किया जाता है। सम्भव है यह 'शिवालक के पहाड़' 'सपादलक्षपर्वत' का बदला हुआ रूप हो ।
कांगड़ा किले के ऐतिहासिक मन्दिर में मूलनायक प्रतिमा श्री आदीश्वर भगवान् की स्थापित की गई थी जो कि बड़ी प्रतिभाशाली और मनोहर थी। मन्दिर जी में और भी अनेकों सुन्दर जिनप्रतिमायें विराजमान थीं। मन्दिर जी की छटा अद्वितीय थी। जिसके सुनहरी कलशों पर इन्द्रध्वजायें बड़े शान से लहराया करती थीं। इस पावन तीर्थ की महिमा दूर दूर तक फैली हुई थी जिस के कारण समय समय पर यात्री लोग इस की यात्रा को बड़े आनन्द और उत्साह से आया करते थे और तीर्थ दर्शन प्ते अपने को धन्य मानते थे। यह तो था कांगड़ा किले का सब से प्राचीन सर्वोत्तम मन्दिर । ____ इस के अतिरिक्त कांगड़ा नगर में तथा आस पास के क्षेत्रों में भी अनेकां जैन मन्दिर शोभायमान थे । जिस से सिद्ध होता है कि कांगड़ा के सारे क्षेत्र में जैनों को हजारों की बस्ती होगी । इतिहास यह भी बताता है कि सुर्शमचन्द्र के कई वंशज जैन धर्म के श्रद्धालू रहे और उन्होंने समय समय पर जैन मन्दिर और जैन मूर्तियों की स्थापना की। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com