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________________ (२) भूतकाल का कांगड़ा तीर्थ पंजाब प्रदेश को पर्वतीय श्रेणियों में कांगड़ा जिले का विशाल रमणीय क्षेत्र है जिस में नगर-कोट-कांगड़ा नाम का प्राचीन ऐतिहासिक नगर है । नगर के दक्षिण की ओर रमणोय चोटियों पर एक प्राचीन विशाल किला शोभा दे रहा है जो कि वीरों के समान रण-भूमि में शत्रु के अनेक प्रहारों को बड़े साहस ओर धेय्य के साथ सहन करता हुआ भी पूरी शान के साथ खड़ा है । इसके दोनों ओर बान-गङ्गा और मांझी नाम की दो सुन्दर नदियां, दो वीरांगनाओं के रूप में मानो इसकी वीर गाथाओं पर मुग्ध हो कर अटखेलियां करती हुई अपने मधुर स्वरों से गाती हुई, मीठी झंकार से रास रचाती हुई बराबर आगे बढ़ती चली जाती है और अन्त में इसे अपनी भुजाओं में लेतो हुई दूध और पानी के समान घुल-मिल गई हैं। यही गौरवशाली किला हमारा कोर्तिस्तम्भ है-हमारा प्राचीन ऐतिहासिक तीर्थ । भगवान् श्री नेमिनाथ २२वें तीर्थंकर के समय में महाभारत युग में चन्द्रवंशी कटौच कुल में उत्पन्न महाराजा श्री सुशर्मचन्द्र के कर-कमलों से इस नगर व तीर्थ की स्थापना हुई थी। उन दिनों कांगड़ा का यह विशाल क्षेत्र त्रिर्गत-देश का एक भाग था जो कि एक समय जालन्धर-देश के नाम से भी प्रसिद्ध हुआ। यह नगरी जिसे आज नगर-कोट-कांगड़ा कहते हैं, इन्हों महाराजा सुर्शमचन्द्र के कर-कमलों से स्थापित होने के कारण सर्शमपर नाम से प्रसिद्ध थी । यही * देखो विज्ञप्ति-त्रिवेणि। + कांगड़े की जनता भी इन भावों की पुष्टि करती है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034917
Book TitleKangda Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantilal Jain
PublisherShwetambar Jain Kangda Tirth Yatra Sangh
Publication Year1956
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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