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श्री आदिजिनाय नमः
श्री कांगड़ा जैन तीर्थ
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मङ्गलाचरण आदि-जिनंद जिस मन बसे, निर्मल ता मन होय ।
शान्तिनाथ सिमरूं सदा, व्यथा रहे न कोय ।। ! विषय-कषाय मम मिटे, नेमिनाथ भगवन्त ।
पास प्रभु के सिमरण से, होवे दुःख का अन्त ॥ वीरों में महावीर है, तारागण में चाँद । इस निर्बल को बल मिले, कर्म ताप हो मांद ॥ गौतम की लब्धि मिले, पाऊँ सम्यक्-ज्ञान ।
आतम वल्लभ सद् गुरु, मिले शान्ति-भगवान ॥ अम्बे, मां चक्र श्वरी विजया पद्मा ध्याय । 'नाहर' सिमर सरस्वती, कार्य सिद्ध हो जाय ॥ || = = = = = = = =
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