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(झ) प्रकाशन से पूर्व कौन जानता था कि कभी पंजाब में भी भव्य जिनालय, संपन्न श्री संघ, और विद्वान् जैन-प्राचार्यों का अस्तित्व था
और इस धर्म को न केवल राज्याश्रय प्राप्त था, अपितु कुछ राजा भी इसके अनुयायी थे।
अस्तु ! विज्ञप्ति त्रिवेणी के प्रकाशन के बाद यह निश्चित है कि कांगड़ा तीर्थ की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट हुआ। स्वर्गीय जैनाचार्य श्रीमद् विजयवल्लभ सूरि जी ने यात्रासंघ का नेतृत्व कर न केवल प्राचीन गौरव को पुनर्जीवन दिया अपितु पंजाब श्रीसंघ में एक विशेष भक्ति का संचार किया । होशियारपुर श्रीसंघ ने इस तीर्थ की यात्रा के लिये जनता में रुचि उत्पन्न की और प्रतिवर्ष यात्रा की व्यवस्था का भार उठा कर समाज सेवा व शासनोन्नति का महान कार्य किया।
'विज्ञप्ति त्रिवेणी' अब प्रायः उपलब्ध नहीं । इधर हर साल की यात्रा के फलस्वरूप भारत का समस्त श्रीसंघ यह जानने के लिए उत्सक था कि हमारे प्राचीन वैभव के इस केन्द्र का इतिहास क्या है ? ऐसी परिस्थिति में श्री जैन श्वेताम्बर कांगड़ा तीर्थ कमेटी होशियारपुर के उत्साही मन्त्री श्री शान्तिलाल जी नाहर का कांगड़ा के विषय में एक पुस्तक प्रकाशित करना समय की माँग को पूरा करना है । वह न तो इतिहास के विद्वान् हैं और न अध्यापन उन का धन्धा है। फिर भी उन्होंने इसे तैय्यार करने में जो परिश्रम किया है, वह उन की लगन
और अध्ययनशीलता का ज्वलन्त प्रमाण है । पुस्तक पढ़ कर किसी को यह ख्याल तक न आएगा कि एक व्यापारी भी ऐसी सुन्दर शैली व प्रवाहपूर्ण भाषा में लेखनी का चमत्कार दिखा सकता है। उन्होंने भरसक प्रयत्न किया है कि अब तक जो उपलब्ध सामग्री है उस का
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