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________________ (घ ) स्थानों का भी वर्णन किया गया है जो हमारे लिये विशेष ऐतिहासिक महत्त्व रखते हैं इस तरह से इस छोटी सी पुस्तक को अधिक से अधिक उपयोगी बनाने का प्रयत्न किया गया है तो भी अभी अल्पजानकारी होने से कई प्रकार की त्रुटियां रहने की सम्भावना है जिस के लिये मैं क्षमा का प्रार्थी हूँ । अन्त में इस पुस्तक के प्रकाशन कार्य में तथा तीर्थोद्धार में सहयोग तथा सहायता देने वाले सभी महानुभावों का धन्यवाद करना मेरा कर्तव्य है । सब से पहिले अपने प्रकांड विद्वान् मुनिराज श्री प्रकाशविजय जी महाराज का अति धन्यवादी हूँ जिन्हों ने अपने मूल्य समय को इस पुस्तक के लेख सुनने में भेंट किया और समय समय पर अपनी शुभ सम्मति द्वारा सन्मार्ग दिखाते रहे । वन्दनीय श्री प्रकाशविजय जो तथा महान् प्रभाविक साध्वियां जी श्री शीलवति श्री जी श्री मृगवति श्री जी की प्रेरणा से धर्म परायणा बहिन श्रीमति चम्पादेवी जैन धर्मपत्नी सेठ मीरीमल जी रईस मालेरकोटला ने इस पुस्तक की छपाई के लिए २५१) रु० की रकम भेंट करके अपने धन का सदुपयोग किया अतः आप सब का धन्यवाद करता हूँ । जैन दर्शन के प्रखर विद्वान् पं० हीरालाल जी दूगड़ जैन शास्त्रो अम्बाला वालों का आभार मानता हूँ जिन्हों ने इस पुस्तक के संशाधन कार्य में अनेक आवश्यक कार्य होते हुए भी अपना अमूल्य समय देकर हमें अनुग्रहीत किया और सच्ची तीर्थ भक्ति का परिचय दिया। जैन समाज के प्रियवक्ता परम विद्वान् लाः पृथ्वीराज जो जैन एम. ए. शास्त्री प्रोफैसर श्री आत्मानन्द जैन कालिज अम्बाला व संयुक्त मन्त्री श्री श्रात्मानन्द जैन महासभा पंजाब का भी विशेष आभारी हूँ जिन्हों ने अपनी शुभ सम्मति द्वारा हमें मार्ग दिखाया और इस पुस्तक के लिये अपनी सुन्दर प्रस्तावना भेज कर कृतार्थ किया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034917
Book TitleKangda Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantilal Jain
PublisherShwetambar Jain Kangda Tirth Yatra Sangh
Publication Year1956
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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