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(ग) जानकारी प्राप्त हो सकी है उसे यथायोग्य वर्णन करने का प्रयत्न किया गया है।
मुनि श्री जिनविजय जी महाराज का जितना भी धन्यवाद करें थोड़ा है क्योंकि उन्हीं के विशेष प्रयत्न से हमें इस तीर्थ की सुन्दर रूप-रेखा का कुछ ज्ञान प्राप्त हो सका है। मुनि जी को प्रन्थ-भण्डारों की शोध-वोज करते हुए एक विज्ञप्ति पाटन के भण्डार से प्राप्त हुई जिसमें कांगड़ा तीर्थ की यात्रा का वर्णन था तब उन्होंने इस सम्बंध में और सामग्री भी प्राप्त करने का प्रयत्न किया । शोध-खोज के विभाग के डायरैक्टर जैनरल सर ए. सी. कनींघम की रिपोर्ट से भी उन्हें इस प्रबंध में अच्छा सहयोग मिला। फलतः उनके उद्यम से कांगड़ा तीर्थ का सुन्दर इतिहास प्रकाश में आया जो कि विज्ञप्ति त्रिवेणी के नाम से हमें आनन्दित कर रहा है।
मैंने अपनी इस पुस्तक में इसी ग्रन्थ से विशेष सामग्री ली है।
भूतकाल के कांगड़ा तीर्थ और वर्तमान के कांगड़ा तीर्थ की अवस्था में भारी अन्तर है । पूर्व समय में यह तीर्थ जिस ऋद्धि तथा ऐश्वर्य को प्राप्त था आज इस अवस्था में नहीं है । भूतकाल इसकी यौवनावस्था थी तो वर्तमान इसका बुढ़ापा । अतः इस पुस्तक में तीर्थ के इतिहास को दो भागों में बांट दिया गया है यथाः-भतकाल का कांगड़ा तीर्थ और वर्तमान का कांगड़ा तीर्थ । दोनों अवस्थाओं में उपयोगी सामग्री देने का पूरा प्रयत्न किया गया है।
इस पुस्तक में मैंने कुछ ऐसी घटनाओं का भी वर्णन किया है जो यात्रा के दिनों में हमारे अपने देखने और सुनने से अनुभव में आई हैं। तीर्थ सम्बन्धी कुछ भजन स्तवन तथा योग्य महापुरुषों के शुभ संदेश भी इसमें दे दिये गये हैं और कांगड़ा जिले के सभी ऐसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com