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कर्तव्य हो जाता है कि इसकी सुरक्षा, देख-रेख और पुनरुद्धार करने के लिए शोघ्र कटिबद्ध हो जावें और इसे फिर से प्रतिभाशाली और गौरवसम्पन्न बनाने में प्रयत्नशील हों।
दो तीन शताब्दियों से जैन समाज अपने इस प्राचीन एवं गौरवशाली तीर्थ से अपरिचित रहा। हमारे स्वर्गाय गुरुदेव पंजाब केसरी, युगवीर जैनाचार्य १००८ श्रीमद् विजयवल्लभ सूरीश्वर जी महाराज ही सौभाग्यशाली थे जिन्हें किसी तरह से इस मंदिर और मर्ति की जानकारी प्राप्त हुई अतः उन के दिल में इस मनोहर मर्ति के दर्शनों की विशेष उत्कण्ठा पैदा हुई । उन्होंने दो बार विशाल यात्रा-संघों में सम्मिलित हो कर इस पावन तीर्थ की यात्रा की और अतीव आनन्द प्राप्त किया।
इस प्राचीन पावन तीर्थ से जैनों को परिचित करवाने के लिये तथा इसके दर्शन और पूजन से आत्म-कल्याण का लाभ उठाने की भावना से "श्री श्वेताम्बर जैन कांगड़ा तीर्थ-यात्रा-संघ होशियारपुर" की स्थापना हुई। फलतः कई वर्षों से यात्रा-संघ अपने हजारों भाई बहिनों को इस पावन तीर्थ की यात्रा का लाभ दिलाने का सौभाग्य प्राप्त कर रहा है।
यात्री भाई प्रतिवर्ष सुन्दर कार्यक्रम होने से यात्रा से विशेष आनन्द और उत्साह प्राप्त करते चले आ रहे हैं तथा इस प्राचीन तीर्थ के सुन्दर इतिहास की जानकारी प्राप्त करने की इच्छा भी साथ ही साथ प्रकट करते चले आ रहे हैं । हमारे पास इस साहित्य की कमी होने से हमने यह अनुभव किया कि कांगड़ा तीर्थ का संक्षिप्त इतिहास लिखा जावे । फलस्वरूप यह छोटी सी पुस्तिका आपके कर. कमलों में भेंट है।
इसी सम्बन्ध में निवेदन कर दू' कि इस महान-तीर्थ का पूर्ण इतिहास आज भी हमें उपलब्ध नहीं है तो भी जो थोड़ी बहुत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com