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दो शब्द प्राचीन काल से जैन समाज में तीर्थयात्रा का विशेष महत्त्व रहा है । सैंकड़ों हजारों लोग मिल कर बड़े आनन्द और उत्साह से तीर्थयात्रा करते चले आए हैं। वैसे तो प्रत्येक जिन मन्दिर और जिन मूर्ति स्थावर तीर्थ रूप है परंतु विशेषतः तीर्थंकरों के कल्याणक भूमियां समवसरण के क्षेत्र, जैन ऐतिहासिक स्थान, अतिशयक्षेत्र, ओर प्राचीन जैन मंदिर और जिन मृतियों को ही स्थावर तीर्थ के रूप में याद किया जाता है । स्थानीय मन्दिर और मूर्तियों की अपेक्षा ऐसे महत्त्वशाली तीर्थों के दर्शन पूजन से मन को असीम
आनंद और भावनाओं में विशेष आकर्षण पैदा होता है । जिस से प्रेरित हो कर कई भाग्यशाली अपने प्रात्म-कल्याण में तत्पर हो जाते हैं भव्य प्राणियों के तरने में साधन होने से ही ऐसे पुण्य क्षेत्र तीर्थ कहलाते हैं।
श्री कांगड़ा-जैन-तीर्थ ऐसे ही मान्य तीर्थों की गणना में खड़ा हो सकता है क्योंकि यह प्राचीनता को दृष्टि से अद्वितीय, प्राकृतिक दृष्टि से अति सुन्दर और ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष महत्त्व रखता है । भगवान् श्री नेमिनाथ के समय की यादगार, हरे-भरे पर्वतों, सुन्दर नदियों, और जलाशयों से शोभायमान, बड़े बड़े नरेशों और धनाढय पुरुषों से पूजित यह पावन तीर्थ समय के हेर फेर से आज । टूटे फूटे खण्डहरों में के रूप में शाही किले में विराजमान है। इस समय इस तीर्थ में केवल भगवान् श्री आदिनाथ की मनोहर मर्ति ही एक छोटी सी कुटिया में शोभा दे रही है।
हमारे पुरातन वैभव का सुन्दर चिन्ह होने से यह एक मूर्ति और यह छोटा सा एक मंदिर हमारे लिए सैंकड़ों साधारण मूत्तियों और विशाल मंदिरों से भी अधिक महत्त्वशाली है इसलिए हमारा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com