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________________ ( ७१ ) निमित्त समर्पण कर दिया है अतः वहां धर्मशाला खड़ी करने में हमें सुविधा हो गई है । पूर्व समय में कांगडा में सैंकड़ों जैन बसते थे परन्तु अब वहाँ एक भी जैन घराना नहीं है इसलिए यदि वहाँ ऐसे साधन जुटाए जायें जिस से अधिक जैन वहाँ बस सकें तो बहुत अच्छा हो। इस से सेवा पूजा का भी विशेष आनन्द रहेगा और तीर्थ की सुरक्षा में भी सुविधा रहेगी। जैसे वरकारणा जी तीर्थ की सुरक्षा के लिए विद्यालय की स्थापना की गई उसी भाँति स्वर्गीय बाबू कीर्तिप्रसाद जी जैन वकील बिनोल वालों ने अपने एक पत्र द्वारा यह शुभ विचार प्रकट किया था कि वहाँ एक विद्यालय अथवा गुरुकुल का स्थापित किया जाना लाभप्रद रहेगा । अतः समाजसेवी विद्वान् महानुभावों को इस विचार को भी ध्यान में रखना चाहिए । इसी प्रकार कांगड़े का यह क्षेत्र मधुर स्वास्थ्यप्रद जल-वायु का सुन्दर स्थान है अतः समाज की ओर से यदि वहाँ एक सुन्दर सैनीटोरीयम अथवा हस्पताल खोल दिया जावे तो अत्यन्त लाभकारी सिद्ध हो सकता है जिस से जहाँ हम समाज सेवा का सुअवसर प्राप्त कर सकेंगे वहाँ तीर्थ की उन्नति में भी अच्छा सहयोग प्राप्त हो सकेगा । आत्मचिन्तन करने वाले महानुभावों को पर्वतीय क्षेत्र अति लाभकारी सिद्ध होते हैं क्योंकि एक तो वहाँ का वायुमण्डल शुद्ध श्रीर शान्त होता है दूसरे एकान्त स्थान सुविधा पूर्वक मिल जाने से मन को एकाग्र करने में सहायता मिलती है । जैसे श्राबूमाउन्ट वाले महात्मा श्रद्धेय गुरुदेव परम - योगीराज श्री विजयशान्ति सूरीश्वर जी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034917
Book TitleKangda Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantilal Jain
PublisherShwetambar Jain Kangda Tirth Yatra Sangh
Publication Year1956
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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