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महाराज आबू पहाड़ की शान्त गुफाओं में रह कर बिशेष आत्मिकअानन्द का अनुभव करते थे । इसी प्रकार कांगड़ा का यह रमणीय क्षेत्र भी अपने शान्त वातावरण से अपने प्रेमियों को मुग्ध कर सकता है । वहाँ पर स्थापित एक सुन्दर श्राश्रम जहाँ अपने भावुकों की इस मनोकामना को पूरी कर सकेगा वहाँ प्रभु पूजा और तीर्थ सेवा के सुअवसर को भी जुटा सकेगा।
विशेष कहने का अभिप्राय यही है कि वहाँ किसी भी उचित साधन से कुछ जैनों को अवश्य बसाना होगा तभी इस महातीर्थ की देख-रेख और उन्नति करने में सहायता मिल सकेगी।
भद्रमस्तु जिनशासनाय । स्वस्ति श्री सङ्घाय । आयुष्यमस्तु गुणगृह्य भ्यः । स्माधिरस्तु स्वयूथ्यानामिति ॥
ॐ शान्ति शान्ति शान्ति
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