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जैसा कि हमारे माननीय आचार्य श्री विजयसमुद्र सूरि जी महाराज ने अपने पत्र में फरमाया है कि नवीन मन्दिर के निर्माण की अपेक्षा प्राचीन मन्दिर के उद्धार करने में आठ गुणा फल होता है अतः भाग्यवान् इस पावन तीर्थ की सेवा करके पुण्य के भागी बनें।
आप को यह जान कर प्रसन्नता होगी कि हमारी समाज के सर्वानुप्रिय नेतागण श्रीमान् सीनियर सबजज बाबू ज्ञानदास जी साहिब, सेठ श्री कीकाभाई रमणलाल जी पारिख देहली और प्रो० बदरीदास जी जैन देहली जैसे महानुभाव तोर्थ के उद्धार में विशेष दिलचस्पी ले रहे हैं और जैन समाज के सुप्रसिद्ध सेठ साहिब महामान्य श्री कस्तूरभाई लालभाई जो अहमदाबाद, श्रीयुत सेठ फूलचन्द शामजी भाई बम्बई तथा श्रीमान् सेठ मोहनलाल भाई चौकसी आदि अपना पूर्ण सहयोग देने का विश्वास दिला चुके हैं जिससे हमें विश्वास होना चाहिये कि हम अपने मनोरथ में अवश्य सफल होकर रहेंगे तो भी सभी भाइयों का कर्तव्य है कि वे भी यथायोग्य तीर्थ सेवा करने में अपना हाथ बटाते रहें ।
तीर्थोद्धार के विषय में प्रथम तो हमें पूजा सेवा करने की स्वतन्त्रता नहीं है जिसका प्रबंध करना परम आवश्यक है। इसके साथ ही साय प्रभु प्रतिमा को यथायोग्य सुन्दर सिंहासन पर विराजमान करना है जिसके लिये हमारे मान्य नेतागण पुरुषार्थ कर रहे हैं।
तीर्थ की देख-रेख और पूजा-सेवा के लिये प्रबंधकों और यात्री लोगों के ठहरने के लिये एक धर्मशाला भी चाहिये जिसके लिये हमारे धर्मप्रेमी ला० मकनलाल प्यारेलाल जी गुजरांवाला वालों ने कांगड़ा में किले के समीप ही भूमि का एक विशाल टुकड़ा खरीद कर तीर्थोन्नति
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