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________________ उपसंहार प्यारे बन्धुओ ! आपने अपने प्राचीन तीर्थ श्री कांगड़ा जी के गौरवमय इतिहास को पढ़ा । मुझे विश्वास है कि इसे पढ़ कर आप के हृदय - सागर में प्रेम की तरंगें उठने लगी होंगी और इसके पुनरुद्धार के लिये आपकी सद्भावनाओं को अवश्य प्रेरणा मिली होगी । इस तीर्थ का सम्बन्ध किसी एक सोसायटी अथवा नगर से नहीं है । इसका सम्बंध तो सारी जैन समाज से है । इस लिये सार समाज का विशेषतः पंजाब के जैनों का यह परम कर्तव्य हो जाता है कि इसके उदय तथा उन्नति के लिये पूर्ण सहयोग दें । स्वर्गीय डा० बनारसीदास जी जैन एम० ए० पी० एच० डी० अपने पत्रों द्वारा समाज को जो चेतावनी दे गये हैं उस पर अवश्य ध्यान देना चाहिये । उनका फरमान है कि जैन समाज अपनी ऐतिहासिक सामग्री यथा प्राचीन मन्दिर, मूर्त्तियाँ और प्रन्थादि की सुरक्षा पर उचित दृष्टि न देकर महान् भूल कर रही है । उन्होंने कहा है कि पंजाब ऐतिहासिक सामग्री से अब भी भरा पड़ा है इसकी सुरक्षा करना परम आवश्यक है । इस दृष्टि से कांगड़ा तीर्थ विशेष महत्व रखता है । अतः इस ओर सारे समाज को अवश्य दृष्टि देनी चाहिये । ६६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034917
Book TitleKangda Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantilal Jain
PublisherShwetambar Jain Kangda Tirth Yatra Sangh
Publication Year1956
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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