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( ग ) सब कुछ समझकर अनन्त भविष्य को विस्मरण नहीं कर देता। तदनुसार सेठ रावतमलजी ने व्यापार से निवृत्ति ले ली और देशनोक में आकर निवृत्तिमय धार्मिक जीवन यापन करने लगे। अन्ततः सं. १६६६ में आपका स्वर्गवास हुआ।
श्रीप्रेमसुखजी आपके उत्तराधिकारी हैं। उल्लिखित दोनों दुकानों के अतिरिक्त प्रेमनगर चाय का बगीचा चारों भाइयों की भागीदारी में है। दोनों दुकानों पर 'रावतमल प्रेमसुख' नाम से व्यापार चलता है और अब सिलचर में भी इसी नाम से एक ब्रांच खोली है। आपके दो पुत्र हैं, जिनका नाम पांचीलालजी और फतहचन्द्रजी हैं।
सेठ मोतीलालजी ने भी खूब प्रतिष्ठा प्राप्त की है। आप श्रीमंगल-म्युनिसिपैलिटी की जनता द्वारा चुने हुए सदस्य हैं। आपकी व्यापारिक प्रामाणिकता से प्रसन्न होकर वायसराय और आसामगवर्नर के द्वारा छठे जार्ज के सिंहासनारोहण के अवसर पर
आपको पदक और प्रमाणपत्र प्रदान किये गये हैं। श्रीमंगल और सिलचर में आपका कारवार 'पीरदान रावतमल' के नाम से ही चालू है। आपके आनन्दमलजी, मानमल जी, मगनमलजी, हनुमानमलजी एवं डालचन्दजी नामक पांच पुत्र हैं।
श्रीनेमिचन्दजी सोहनलालजी का कारवार साथ ही है। आपके श्रीमंगल में 'पीरदान सोहनलाल' भानुगाछ में पीरदान नेमीचन्द' तथा शमशेरनगर में 'नेमचन्द सोहनलाल' के नाम से
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