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( ख ) प्रसन्न कर देता था। प्रसन्न वदन और विनोदमय स्वभाव, प्रकृति की मनुष्य के लिए बड़ी से बड़ी देन है। यह देन आपको पर्यात मात्रा में प्राप्त थी। इसके साथ ही धर्म की ओर आपकी गंभीर अभिरुचि भी थी । व्यापार करते हुए भी धर्म का परिपालन किस प्रकार किया जा सकता हैं, दोनों का किस प्रकार समन्वय किया जा सकता है, यह बात सेठ पीरदानजी के जीवनव्यवहार से सीखने योग्य है । आपका स्वर्गवास हुए, एक लम्बा अर्सा हो गया है, फिर भी आपका नाम जिह्वा पर रहता है।
आपके पाँच पुत्र हुए-तोलारामजी, मोतीलालजी, प्रेमसुखजी, नेमिचन्द्रजी तथा सोहनलालजी। दो पुत्रियां भी हुई। इनमें से श्रीतोलारामजी सं.१९७२ में ही, छोटी उम्र में अपनी बुद्धिमत्ता और व्यापारकुशलता का परिचय देकर असार संसार का त्याग कर गये। श्रीप्रेमसुखजी अपने काका सेठ रावतमलजी के यहां दत्तक हैं।
___ संठ रावतमलजी का जन्म सं. १६१८ में हुआ था। आपने भी मोलवी बाजार में उन्म श्रेणी की प्रतिष्ठा प्राप्त की। एक प्रतिष्ठित व्यापारी समझकर सरकार ने आपको वहाँ के लोकल बोर्ड के सदस्य बनाकर अपनी कद्रदानी का परिचय दिया। संवत् १९७७ में आपने श्रीमंगल में एक नवीन दुकान खोली। इस प्रकार व्यापार को किस्तृत करके और उसमें सफलता प्राप्त करके आपने निवृत्तिमय जीवन विताने की इच्छा की । लौकिक सफलताएँ प्राप्त करके विवेकशील व्यक्ति उनमें फंसा नहीं रहता। वह वर्तमान को ही Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com