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________________ बीकानेर के व्याख्यान]] [३८६ --- - --- --- ------- - - - यह प्रमोदभावना के विरुद्ध है। प्रमोदभावना का विकाश करके गुणी की पूजा-सेवा की वृद्धि करो तो आप स्वयं गुणमय बन जाएँगे और आपको प्रमोद की प्राप्ति होगी। अतएव गुणीजनों का सत्कार करो, उनके गुणों को अपनायो। अगर उनमें कोई त्रुटि दीखती हो तो उसका अनुकरण मत करो। कहा जा सकता है कि यह परस्पर विरोधी उपदेश है। एक ओर प्राणी मात्र पर मैत्रीभावना रखने का उपदेश दिया जाता है और दूसरी ओर गुणीजनों के आदर का उपदेश दिया जाता है । यह दोनों उपदेश कैसे संगत हो सकते हैं ? गाय के चारपैर और चार ही स्तन होते हैं। गाय लंगड़ी हो तो उसके स्तनों में भी त्रुटि हो जायगी। अतएव लंगड़ी गाय उतने काम की नहीं होती । इसीलिए करुणा भावना कही है । जिसमें गुण न हों उसके प्रति करुणा भावना धारण करो। .किसी को दुखी मत करो और कोई दुखी दिखाई दे तो उस पर करुणा भाव लाओ। करुणा इतनी उदार होती है कि वह गुण-अवगुण नहीं देखती । गुणी की पूजा होती है और दुखी पर करुणा की जाती है। मुनि को आहार दिया जाता है सों करुणा से नहीं वरन् गुणपूजा के भाव से दिया जाता है। गुणपूजा ही मुनि को वंदना करने के लिए प्रेरित करती है। इस प्रकार प्रमोदभावना गुणी जनों के प्रति और करुणा भावना दीन-दुखियों के प्रति धारण की जाती है। भगवान् ऋषभदेव ने मनुष्यों को दुखी देखकर ही इस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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