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[ जवाहर - किरणावली
स्थिति पर पहुँचाया था, कहा जा सकता है कि इस स्थिति पर पहुँचाने से तो आरंभ-समारंभ बढ़ गया ! परन्तु करुणा में डूबा हुआ आरंभ-समारंभ या भूत- भविष्य के विचार से अपने कर्त्तव्य का परित्याग नहीं करता और न अपनी मर्यादा का ही लोप करता है । वह पराये दुःख को भी अपना ही दुःख मानता है और जब तक उसे दूर नहीं कर देता तब तक चैन नहीं लेता । ऐसी भावना वाला सब का मित्र बन सकता है । हाँ जिसके दिल में यह विचार होगा कि अमुक की दया करूँ और अमुक की नहीं, वह पक्षपाती है । करुणा सर्वभूती होनी चाहिए ।
कल्पना करो कि आपके शत्रु का लड़का और आपका लड़का- दोनों साथ-साथ खेल रहे हैं । शत्रु का लड़का किसी गाड़ी की टक्कर लगने से गिर पड़ा। ऐसे समय पर आप क्या करेंगे ? अगर आपके हृदय में करुणाभाव है तो आप उस समय वैर का विचार नहीं करेंगे। अगर दोनों लड़के गिर पड़े हों और अपना लड़का दूर तथा शत्रु का लड़का पास हो तो करुणाभाव वाला मनुष्य पहले शत्रु के लड़के को ही उठायेगा । अगर वह पास में पड़े हुए लड़के की उपेक्षा करता है तो पक्षपात करता है ।
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चौथी मध्यस्थभावना है । सारा संसार आपकी इच्छा अनुसार कभी नहीं बन सकता । तीर्थकरों के समय में भी संसार एक-सा नहीं हुआ तो श्रब क्या होगा ? श्रतएव किसी का
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