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________________ ३८८] [जवाहर-किरणावली - . -- - ---.. -... माता अपने पुत्र पर मैत्रीभावना रखती है, फिर भी समय पर उसे दंड देने से नहीं चूकती। उसकी दंड देने की क्रिया में पुत्र के कल्याण की ही भावना होती है। वास्तव में चाहे कोई त्यागी हो या गृहस्थ हो, राजा हो या व्यापारी हो, किसान हो या सराफ हो, अगर उसके अन्तःकरण में न्याय का भाव है, निष्पक्षता है और स्वार्थसाधन के लिए दूसरों का अनिष्ट करने का इरादा नहीं है तो अवश्य ही वह मैत्रीभावना की आराधना कर सकता है। समाज रूप विराट पुरुष की सेवा का जो भी काम किसी ने अपने हाथ में लिया हो, उसे प्रामाणिकतापूर्वक करने पर ही मैत्रीभावना होती है। जिसके हृदय में मैत्रीभावना जागृत होगी वह किसी को धोखा नहीं देगा। वह किसी से ईर्षा-द्वेष नहीं रक्खेगा। सचाई और सरलता के साथ ही वह सबके प्रति बर्ताव करेगा । वह दंड देगा तो आत्मा को शुद्ध करने के लिए ही देगा। __ दूसरी प्रमोदभावना है । यह भावना सदा गुणी जनों का ध्यान कराती है। एक आदमी शत्रु है मगर मुनि बन गया है और दूसरा मित्र है मगर पतित हो गया है। प्रमोदभावना वाला पुरुष इन दोनों में से गुणी को ही अपनाएगा, गुणी का ही आदर करेगा। घर में भी गुण के आदर की आवश्यकता है, केवल हड्डियों के आदर की नहीं । भाई का लड़का गुणी है फिर भी उसे पराया मानो और उसका आदर न करो और अपने निर्गुण लड़के का भी आदर करो और उसे अपना मानो, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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