SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 368
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बीकानेर के व्याख्यान] [३५६ के साथ गा रहा है। वह कहता है-प्रभो ! तूने राजा के घर तो दीपक का प्रकाश किया परन्तु मेरे घर का तो अंधकार ही हर लिया ! गरीब किसान ऐसी अवस्था में, जब कि उसकी झोंपड़ी टूटी-फूटी है, और सामने राजमहल है, क्यों मस्त होकर गा रहा है ? जो लोग मस्तक से ही विचार करते हैं उन्हें इसका कारण मालूम नहीं हो सकता। अहिंसा, संयम और तप हृदय की उपज हैं । कोरे मस्तिष्क की सहायता से इनका महत्त्व और रहस्य कैसे समझा जा सकता है? किसान के गाने में कौन-सी प्रेरणा काम कर रही है, यह कौन कह सकता है ? फिर भी कल्पना की जा सकती है। वह दरिद्रता की अवस्था में दूसरों की तरह परमात्मा को गालियाँ न देकर उनका उपकार मान रहा है। उपकार इसलिए कि राजा के घर में संसार के समस्त अन्यायों का पैसा है। वेश्या, शराबी, कसाई, चोर, डाकू, निस्संतान आदि सब का पैसा राजा के घर में जाता है। उन्हीं पेसों से राजा के घर में दीपक जग-मगा रहे हैं। किसान ऐसे दीपकों की मौजूदगी में भी अंधकार ही मानता है । वह प्रसन्न है, क्योंकि वह अन्याय और अत्याचार से दूर है। वह किसी दूसरे के परिश्रम का नहीं खाता। स्वयं परिश्रम करता है और उसके बदले में जो कुछ पाता है, संतोष के साथ खा लेता है। जो सहदय होगा वह अवश्य ही विचार करेगा कि मेरे, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy