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[जवाहर-किरणावली
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किसी भी कार्य से दूसरे को दुःख न उठाना पड़े। जिन कार्यों में करुणा का अभाव होगा वे हृदय की नहीं वरन् मस्तिष्क की उपज होंगे। हृदय में करुणा होने पर ही भुवनभूषण को पहिचाना जा सकता है। दयाधर्म को पाने वाला ही पुण्यवान् होता है। जिसका हृदय दया से भरपूर है, वह स्वर्गीय सम्पत्ति से सुशोभित है। आप ऊपरी वैभव देखकर ही किसी को पुण्यवान् मान लेते हैं, पर हृदय के विचारों से पता लगता है कि वास्तव में कौन पुण्यशाली है और कौन नहीं ? ___ एक करोड़पति गहनों और कपड़ों से सजा हुआ मोटर में बैठा हुआ है। मोटर तेजी के साथ जा रही है। किसी गरीब को मोटर की ठेस लगी । इधर तो मोटर की ठेस लगी, उधर सेठजी उसे डाटकर कहने लगे-'मूर्ख कहीं का ! देखता नहीं मोटर आ रही है ! एक किनारे हटने के बदले सामने आता है और हमें बदनाम करना चाहता है ! इतना कहकर सेठजी चले गये। उस चोट खाये गरीब को उठाना या सहानुभूति प्रकट करना उन्होंने आवश्यक नहीं समझा। इतने में दूसरा गरीब वहाँ आ पहुँचा। उसने आहत गरीब को उठाकर छाती से लगाया, चिकित्सालय में पहुँचा दिया और उसकी यथोचित सेवा की। अब आपका हृदय किसे पुण्यवान् कहता है-उस अमीर को या इस गरीब को ? ..'गरीब को !
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