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________________ ३५८] [जवाहर-किरणावली ------ ---- वस्तुओं का उपकार नहीं भूलना चाहिए, ऐसा शास्त्र का आदेश है । उनमें से छह काय का बहुत बड़ा उपकार बतलाया गया है। क्या पृथ्वी की सहायता के विना संयम पल सकता है ? 'नहीं!' इसीलिए भगवान् महावीर कहते हैं कि पृथ्वी का उपकार मानो। जिस भूमिपर पैर टेक कर खड़े हो वह स्वर्ग से भी बड़ी है । भूमि कहीं की हो, लेकिन जो हमारा वजन उठा रही है और जिस भूमि पर हमारी संयम की क्रिया पल रही है, उसे अगर स्वर्ग से हीन मानें तो उस पर पैर धरने का क्या अधिकार है ? इस भूमि पर आप सामायिक करते हैं । क्या स्वर्गभूमि में सामायिक की जा सकती है ? 'नहीं!' यहाँ के पवन से और पुद्गलों से आपका शरीर पल रहा है, आपका धर्मध्यान हो रहा है, फिर आप अपनी जन्मभूमि की महिमा न समझकर स्वर्ग की भूमि को बड़ी समझें, यह कैसे उचित कहा जा सकता है ? । रामनरेशजी त्रिपाठी ने एक ग्राम्यगीत सुनाया। उसका आशय यह है कि-एक ओर राजा का महल है जिसमें सब प्रकार की तैयारी के साथ प्रकाश जगमगा रहा है और दूसरी ओर एक किसान का टूटा झोंपड़ा है, जिसमें शीत, ताप और वर्षा नहीं रुकती । किसान इतना गरीब है कि घर में जलाने के लिए दीपक तक नहीं है। फिर भी किसान खड़ा हुआ मस्ती Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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