________________
वीकानेर के व्याख्यान ]
[३५७
-
--
-
-
---
---
-
----
...
----
----
-
-
-
---
--- -
-- -----
-----
उनका मूल्य कल्पित नहीं था, अतएव उनसे कोई हानि नहीं होती थी। मगर कल्पित मूल्य के सिक्कों ने जगत् को बड़ी हानि पहुँचाई है। सिक्कों के प्रताप से आज विश्व में आर्थिक विषमता रूपी पिशाचिनी का भैरवनृत्य हो रहा है !
यह हृदय और मस्तिष्क के संबंध में व्यावहारिक दृष्टि से विचार किया गया है। आध्यात्मिक कार्यों में भी इसी प्रकार विचार किया जा सकता है।
हृदय और मस्तक के कार्यों की तुलना की जाय तो दोनों का भेद अनायास ही समझ में आ जायगा । हृदय में दया, करुणा, परोपकार, संवेदना, सहानुभूति, सहृदयता आदि गुण भरे हैं । मस्तिष्क जब हृदयशून्य होता है तो स्वार्थबुद्धि की प्रबलता के कारण इन सब दिव्य और मृदुल भावनाओं को नष्ट कर देता है । वह स्वार्थ भी थोड़े ही दिनों का मेहमान होता है। कुछ दिनों बाद स्वार्थ भी नष्ट हो जाता है और सारा संसार चक्कर में पड़ जाता है।
ठंडाई, शर्बत, शराब आदि से स्वास्थ्यनाश के सिवाय कुछ भी लाभ नहीं है। क्या पानी के विना जीवन निभ सकता है ?
'नहीं'
फिर भी आप पानी में अानन्द न मानकर गुलाब के शर्बत में ही प्रानन्द मानते हैं । यह संसार के कल्याण से विरुद्ध है या नहीं?
एकान्त रूप से धर्म का आचरण करने वालों को भी पाँच Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com