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________________ वीकानेर के व्याख्यान ] [ ३४६ गौरव समझेंगे । आपकी प्रसन्नता का पार नहीं रहेगा । मगर राजा उदार होकर सभी के घर अगर मुफ्त बिजली पहुँचा दे तो आपको उतना आनन्द होगा ? 'नहीं ।' क्यों ? क्या सब के घर बिजली चली जाने से आपके घर की बिजली का प्रकाश कम हो गया ? ऐसा नहीं है तो प्रसन्नता क्यों नहीं होती ? इसी कारण न कि आप यह चाहते हैं कि मेरे यहाँ हो और दूसरों के यहां न हो ! राजा ने सब के घर बिजली भेजकर आपके यहां अंधकार नहीं कर दिया हैं । आपके घर भी उजाला है और दूसरों के घर भी । फिर आपकी प्रसन्नता क्यों मिट गई ? हृदय की संकीर्णता ने आपके आनन्द को नष्ट कर दिया । बस भुवनभूषण को पहिचानने में भी हृदय की संकीर्णता, हृदय की दुर्बलता और हृदय की क्षुद्रता ही बाधा डालती है । क्षुद्र हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप । हे अर्जुन ! हृदय की क्षुद्र दुर्बलता को छोड़कर तैयार हो जा । यह हृदय की दुर्बलता ही है जो आप से कहलाती है कि बिजली दूसरों के घर न हो सिर्फ मेरे घर हो । तभी मैं सुख का अनुभव करूँगा । आपने कान में मोती पहिने हैं । अब किसी गरीब को भी मोती मिल जायें और वह भी कान में पहन ले तो आपको Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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