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[ जवाहर - किरणावली
इसी प्रकार घर का भूषण घर को, कुल का भूषण कुल को, ग्राम का भूषण ग्राम को, नगर का भूषण नगर को और देश का भूषण देश को सिंगारता है । इसी तरह जो जगत् का भूषण है वह जगत् को सिंगारता है ।
लोग अपने-अपने आभूषण से प्रेम करते हैं । गृहभूषण से गृहवालों का और राष्ट्रभूषण से राष्ट्र का प्रेम होता है । ऐसी दशा में विचारणीय बात यह है कि जो अखिल विश्व का भूषण है और जिसे हम इसी रूप में मानते हैं, उससे किस प्रकार प्रेम किया जाय ?
अगर हम यह स्तुति हृदय से करते हों तब तो जगद्भूषण का विचार बहुत विशाल हो सकता है । मगर हम लोग यह भूल कर रहे हैं कि हम जगद्भूषण की स्तुति तो करते हैं किन्तु साथ ही उनके कामों का विरोध भी करते हैं । वास्तव में विश्व के कल्याण में ही परमेश्वर का वास है । संसार के कल्याण की आन्तरिक कामना ही परमेश्वर का दर्शन कराती है । अगर हम हृदय से भुवन भूषण का स्मरण करें और उनके कामों में बाधा न डालें तो कोई त्रुटि ही न रह जाय ।
आप जानना चाहते होंगे कि हम भुवनभूषरण के काममें क्या बाधा डाल रहे हैं ? यह बतलाने के लिए मैं संसारव्यवहार संबंधी कामों में से ही कुछ उदाहरण देता हूँ । उनसे श्राप समझ जाएँगे कि आप किस प्रकार बाधा डाल रहे हैं ! राजा आपको मुफ्त में बिजली दे दे तो आप अपना
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