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________________ बीकानेर के व्याख्यान] [३४७ - - -- --. - -. --- -. .-- -. ... . ....... - - - - - - -- ... - - - - - - - हृदय शुद्ध करना था। महावीर स्वामी को साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका का संघ चलाकर उनके दुःखों का अन्त करना था। धन्यकुमार (धना ) मुनि को दूसरे मुनियों के सामने आदर्श उपस्थित करना था। इसीलिए तो चौदह हजार मुनियों में यह बहुत उत्तम मुनि माने जाते थे। मतलब यह है कि दूसरों के दुःख को अपना दुःख मानकर उनकी सहायता करना और अपनी संकीर्ण वृत्तियों को व्यापक बना लेना ही अध्यात्मिक उत्कर्ष का उपाय है। आध्यात्मिक उत्कर्ष की चरम सीमा ही परमात्मदशा प्राप्त होना है। भगवान् की स्तुति और भावना से उसकी प्राप्ति होती है। स्तुतिकार ने भगवान् ऋषभदेव की स्तुति करते हुए उन्हें भुवनभूषण और भूतनाथ कहकर संबोधित किया है। भगवान् की स्तुति ऐसी प्यारी वस्तु है कि हार्दिक भावना के साथ उस पर विचार करने पर ऐसा आनन्द होता है कि कहा नहीं जा सकता। हृदय अपूर्व आनन्द का केन्द्र बन जाता है। हृदय की दुर्बलता भी उससे दूर हो जाती है। शरीर के श्रृंगार के लिए बहुत से आभूषण पहिने जाते हैं। विशेषतया स्त्रियां हाथ, कान आदि अवयवों को सिंगारती हैं । यह भूषण शरीर के भूषण हैं और शरीर को सिंगारते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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