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________________ ३५० ] प्रसन्न होना चाहिए या अप्रसन्न होना चाहिए ? 'प्रसन्न होना चाहिए !' लेकिन आपको प्रसन्नता नहीं होती। यही नहीं, उस समय आपकी क्षुद्रता जाग उठती है और अभिमान मिलमिसाने लगता है। कई जगह तो हरिजनों की स्त्रियों को सिर्फ इसलिए पीटा गया है कि उन्होंने पैरों में चांदी के गहने पहन लिये ! इस अभिमान और क्षुद्रता की कोई सीमा है ! अगर इस प्रकार की क्षुद्रता मन में रखना है तो फिर भुवन भूषण के गुण गाने की आवश्यकता ही क्या है ? आप अपने ही भूषणों के गुण क्यों नहीं गाते? इस तरह की विचारधारा रखकर परमात्मा के गुण गाने वाले को परमात्मा नहीं मिल सकता | बहिनों का भी यही हाल है । वे भी यही सोचती हैं कि मेरे ही हाथों में मोतियों की बँगड़ियाँ रहें और दूसरी के हाथ में न रहें। अगर उन्हीं के हाथ में रहीं तो उनका सेठानीपन कायम रहेगा और दूसरी के हाथ में भी हो गई तो सेठानीपन डूब जाएगा ! मित्रो ! हृदय की दुर्बलता के ही कारण इस प्रकार के विचार आपके मस्तिष्क में पैदा होते हैं ! आप दूसरों के सुख को अपना सुख नहीं समझते बल्कि दुःख समझते हैं। सिर्फ आप सुखी बनना चाहते हैं और चाहते हैं कि संसार का सारा सुख आपके ही घर में आकर जमा हो जाय। किसी दूसरे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com [ जवाहर - किरणावली -
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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