SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 340
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बीकानेर के व्याख्यान ] [ ३३१ I वस्तुस्वरूप समझ लेने पर भ्रम हट जाता है । आत्मा और परमात्मा के विषय में पहली बात यह समझ लेना आवश्यक है कि वास्तव में दोनों में कोई मौलिक अन्तर नहीं है । मैं अनेक बार कह चुका हूँ कि आत्मा जब तक आवरणों से लिपटा है, जब तक उसकी अनन्त शक्तियाँ कुंठित हैं, तब तक वह आत्मा है। आत्मा की सम्पूर्ण मलीनता हट जाती है, आत्मा अपनी शुद्ध दशा में श्रा जाता है, तब उसमें 'परम' विशेषण लगा दिया जाता है । अर्थात् श्रात्मा परम - आत्मा-परमात्मा कहलाने लगता है । परमात्मा को अनादि मानना भ्रमपूर्ण है । अगर आत्मा लाख प्रयत्न करने पर भी परमात्मा नहीं बन सकता तो उसका पुरुषार्थ व्यर्थ ही सिद्ध होता है । अतएव यह निश्चित है कि आत्मा, परमात्मा के प्रति जब एकाग्र बन जाता है तो वह स्वयं परमात्मा का रूप धारण कर लेता है । आप भोजन करते हैं । मेोज्य पदार्थों में किसी का नाम रोटी है, किसी का नाम भात है, किसी का और कुछ । इन भाज्य वस्तुओं को जब आप ग्रहण करते हैं तो वह शरीर का रूप धारण कर लेती हैं। पहले जो आहार के रूप में थीं वही अब शरीर के रूप में परिणत हो जाती हैं। शरीर में भी उनके नाना रूप बनते हैं, जैसे रक्त, मज्जा हड्डी आदि ! यह सब धातुएँ अन्न से ही बनी हैं । अन्न में यह जो विलक्षण परिवर्तन हुआ है सो आपकी चैतन्यशक्ति के प्रताप से ही हुआ है । मुर्दे के पेट में रोटी ठूंस दी जाय तो वह सड़ - गल जायगी । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy