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३३०]
[ जवाहर-किरणावली
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आचार्य मानतुंग कहते हैं-हे भुवनभूषण ! मुझे इस बात में कोई आश्चर्य नहीं जान पड़ता कि आपकी स्तुति करने वाला आप जैसा बन जाता है। ऐसा होना तो स्वाभाविक है। या तो अनहोनी बात हो जाने पर आश्चर्य होता है या जिससे जो काम होना संभव न प्रतीत होता हो, फिर भी वह उसे कर डाले । विनीत पुत्र पिता की और पतिव्रता स्त्री पति की सेवा करे तो आश्चर्य नहीं। आश्चर्य तो तब है, जब अविनीत पुत्र पिता की और असती स्त्री पति की सेवा करे ! इस कथन के अनुसार परमात्मा के गुणों का स्तवन करने से, स्तवन करने वाला अगर स्वयं परमात्मा बन जाता है तो आश्चर्य ही क्या है !
प्रश्न किया जा सकता है-परमात्मा अनादि और अनंत है । ऐसी स्थिति में परमात्मा के गुणों का स्तवन करने वाला परमात्मा किस प्रकार बन सकता है ? क्या आत्मा में ऐसे गुण हैं कि वह परमात्मा के साथ एकाग्रता साध कर परमात्मा बन जाए ? आत्मा और परमात्मा जब अलग-अलग हैं तो आत्मा का परमात्मा बन जाना अचरज की बात क्यों नहीं हैं ?
जब तक वस्तु का ठीक-ठीक स्वभाव मालूम नहीं होता तब तक भ्रम बना ही रहता है । परन्तु गम्भीर विचार करके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com