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[ जवाहर - किरणावली
श्राश्रय प्राप्त हो जाय, अगर वह प्रभु के प्रति समर्पित हो जाय तो वह असाधारण बन जायगी ।
परमात्मा का यह आह्वान है कि तू जैसा है वैसा ही मेरे पास आ । यह मत विचार कि मेरे पास ऋद्धि, सम्पदा या विद्वत्ता नहीं है तो मैं परमात्मा के पंथ पर कैसे पाँव रख सकूँगा ! इस विचार को छोड़ दे और जैसा है वैसा ही परमात्मा की शरण में जा । जैसे कमल के पत्ते का संयोग पाकर जल का साधारण बूँद भी मोती की कान्ति पा जाता है, उसी प्रकार तू परमात्मा का संयोग पाकर असाधारण बन जायगा ।
अब यह प्रश्न उपस्थित होता है कि अगर किसी में स्तोत्र बनाकर गाने की शक्ति न हो तो उसे क्या करना चाहिए । स्तोत्र छन्दबद्ध होने के कारण बड़ों का अर्थात् विद्वानों का मन चाहे हर ले, लेकिन छोटों का इससे क्या लाभ होगा ? लेकिन स्तोत्र से अगर विद्वानों का ही मनोरंजन होता हो और छोटों को उससे लाभ न पहुँचे तो वह स्तोत्र ही क्या ? जवार मोतियों से कम कीमती होने पर भी अधिक कीमती होती है, क्योंकि उससे गरीब और अमीर- सब का काम चलता है । मोती तो सिर्फ अमीरों के ही काम आते हैं । इसी प्रकार वही स्तोत्र मूल्यवान् है जिससे सब लोग लाभ उठा सकते हैं। । मगर जो लोग छन्दबद्ध स्तोत्र से लाभ नहीं उठा सकते वे अपने मन, वचन और काया परमात्मा को किस प्रकार अर्पित कर सकते हैं ?
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