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प्रास्तां तव स्तदनमस्तसमस्तदोषं, त्वत्संकथाऽपि जगतां दुरिता निहन्ति | दूरे सहस्रकिरणः कुरुते प्रभव, पद्माकरेषु जलजानि विकाशभान्जि ।। ६ ।।
अर्थसूर्य की बात तो जाने दीजिए, उसकी प्रभा से ही सरोवरों में कमल खिल जाते हैं। इसी प्रकार समस्त दोषों से रहित आपकी स्तुति की तो बात ही क्या, आपका नाम लेने से ही जीवों के पापों का नाश हो जाता है। ___ भगवान ऋषभदेव की स्तुति करते हुए प्राचार्य मानतुंग कहते हैं कि साधारण वस्तु भी जब किसी विशिष्ट वस्तु का आश्रय लेती है तो उसकी साधारणता मिट जाती है और उसमें असाधारणता आ जाती है। आश्रय की विशेषता वस्तु में विशेषता उत्पन्न कर देती है। इसी प्रकार अच्छी वस्तु अगर
दुरी वस्तु का आश्रय लेनी है तो वह भी बुरी बन जाती है। मुझे जो सामान्य वस्तु मिली है, उसे अगर परमात्मा का
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