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________________ २७८ [जवाहर-किरणावली परित्याग करना होगा। इस विषय में शास्त्रकारों का कथन है कि अगर किसी को परमात्मा का प्रकाश लेना है तो उसे अपना मन तैयार करना चाहिए। मन का डांवाडोल होना प्रकृति का उलटा कर लेना है अथवा आंखें या द्वार बंद कर लेने के समान है। जैसे आंखें और किवाड़ बंद कर लेने पर या प्रकृति विपरीत होने पर सूर्य नज़र नहीं आता, इसी प्रकार जब तक तुम्हारा मन अस्थिर है तब तक तुम्हें परमात्मा का प्रकाश नहीं मिल सकता। मतलब यह है कि तुमने अपने ज्ञानचक्षुओं पर पर्दा डाल रक्खा है और चर्मचनुओं से, जिनसे सिर्फ स्थूल भौतिक पदार्थ ही दीख सकते हैं, परमात्मा को देखना चाहते हो। यह कैसे हो सकता है ? जिन श्रांखों से जो वस्तु देखी जा सकती है, उनसे वही वस्तु देखने का प्रयत्न करना चाहिए । आध्यात्मिक वस्तु ज्ञान-चक्षु से ही दिख सकती है, चर्मचनु से नहीं। उस ज्ञानचक्षु पर तुमने पर्दा डाल रक्खा है। तब परमात्मा का प्रकाश तुम्हें कैसे मिल सकता है । शब्द की उपलब्धि आंख से नहीं हो सकती, रस का ज्ञान नाक से नहीं हो सकता, स्पर्श का ज्ञान कान से नहीं होता। यद्यपि इन सब इन्द्रियों में एक आत्मा की शक्ति ही काम करती है, फिर भी इन्द्रियां अपने योग्य विषय को ही जानती हैं। परमात्मा रूप, रस, गंध और स्पर्श से रहित है, इसलिए वह किसी भी इंद्रिय का विषय नहीं है। उसे जानने-पहचानने के लिए ज्ञानचक्षु चाहिए । उस पर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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