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बीकानेर के व्याख्यान ]
[ २७६
जब तक पर्दा डाल रक्खा है तब तक परमात्मा का ज्ञान नहीं होगा ।
प्रश्न हो सकता है - ज्ञानचक्षु पर पर्दा कैसे डाल रक्खा है ? इस प्रश्न का समाधान विचार करने पर आप ही आप हो सकता है । क्या पर्दा पड़ा है, यह बात तो स्पष्ट है, परन्तु लोगों ने अपनी उलटी समझ के कारण उसे उलटा समझ रक्खा है । स्वाभाविक जीवन जीना स्वाभाविक बात है । भगवान् ऋषभदेव ने स्वाभाविक जीवन का पता लगाकर प्रजा को समझाया है और बतलाया है कि मेरी प्रजा को किस प्रकार रहना चाहिए ?
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भोगभूमि कहो या अकर्मण्यभूमि कहो या अकर्मभूमि कहो, उसका अर्थ यह है कि खाना, पीना और मौज तो करना मगर खाने पीने और मौज करने के लिए पैदा कुछ भी न करना । युगलियों को सब वस्तुओं की श्रावश्यकता होती है लेकिन वह सब कल्पवृक्षों से उन्हें मिल जाती हैं । उनके लिए उन्हें उद्यम नहीं करना पड़ता । ऐसी स्थिति में युगलियों को उद्योगी कैसे कहा जा सकता है ? वे अकर्मण्य ही कहलाते हैं। वे कल्पवृक्षों से भीख मांग-मांग कर ही अपनी जिन्दगी व्यतीत करते हैं ।
इस अकर्मण्य दशा में उन्हें मोक्ष प्राप्त हो सकता है ? नहीं ! हां, प्रकृतिजन्य कर्म के विकार उनमें नहीं हैं, क्योंकि उन्हें किसी चीज़ की कमी नहीं पड़ती। कल्पवृक्षों से सब की
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