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वीकानेर के व्याख्यान ]
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पर ही आस्था नहीं है, उन्हें परमात्मा की महिमा समझाना कठिन है । अलबत्ता जो जिज्ञासुभाव से शंका प्रकट करते हैं वे समझ सकते हैं। ___उक्त संदेह के विषय में पहली बात यह है कि सूर्य कैसे ही प्रकाशमान क्यों न हो, जिसने अपने द्वारों के किवाड़ बंद कर रक्खे हैं, सूर्य की किरणे जहाँ प्रवेश नहीं पा सकती, जहाँ सूर्य की किरणों का विरोध किया जाता है, वहाँ का अंधकार अगर नष्ट नहीं होता तो किसका दोष समझा जाय ? __ दूसरी बात भी है। कई जीव सूर्य से विरुद्ध प्रकृति वाले भी हैं । सूर्य सबको प्रकाश देता है लेकिन उल्लू चमगीदड़
आदि कई ऐसे जीव हैं जो अंधकारमयी रात्रि को ही प्रकाश मानते हैं और सूर्य के निकलने पर उनके लिए अधकार हो जाता है। अब अगर वे कहने लगे कि सूर्य किस प्रकार प्रकाश देता है, यह हमें दिखलाओ तो कैसे दिखलाया जाय ? जब तक उनकी आँखों की रोशनी न बदले तब तक उन्हें सूर्य या उस का प्रकाश कैसे दीख सकता है ?
तीसरे, सूर्य का प्रकाश फैला होने पर भी जिसने अांखें मंद रक्खी हैं, उसे अांखें खोले बिना प्रकाश दिखाई दे सकता है?
जिसे सूर्य के प्रकाश को देखना है, समझना है और उसके महत्त्व को जानना है उसे अपने द्वार खुले रखने होंगे, अपने नेत्र खुले रखने होंगे और अपनी विरोधी प्रकृति का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com