SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 271
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६२ ] [ जवाहर - किरणावली को प्रकट करता है वह ढांग नहीं करना चाहता । इस कारण वह निरन्तर अपनी लघुता को कम करता रहता है, गुरुता प्राप्त करता रहता है और एक दिन वह पूर्णता भी प्राप्त कर लेगा । मगर जो वास्तव में लघु है किन्तु अपनी लघुता को समझना ही नहीं चाहता अथवा समझ कर भी छिपाना चाहता है, अपमान के भय से प्रकट नहीं करना चाहता, बल्कि अपनी गुरुता प्रकट करता है; उसका हृदय सरल नहीं है । उसके हृदय में कपट है । वह अपने ढोंग के कारण ऊपर नहीं चढ़ेगा । उसका पतन अवश्यंभावी है । उसे समझना चाहिए कि अपूर्णता होना अनोखी बात नहीं है । वह तो मनुष्य मात्र में होती है। लेकिन जो मनुष्य अपनी पूर्णता को सरल हृदय से स्वीकार करता है और उसे दूर करने की निरन्तर चेष्टा करता रहता है, वह अवश्य ही उसे दूर कर देता है । आचार्य मानतुंग ने भक्तामरस्तोत्र की रचना करते हुए अपनी जो लघुता प्रकट की है, उससे क्या उनके गौरव को क्षति पहुँची है ? नहीं । इससे उनका गौरव घटा नहीं, बढ़ा ही है । उनके लघुताप्रकाशन से उनकी सरलता, निरभिमानता और महत्ता ही प्रकट होती है और ऐसे महानुभाव जनता के आदर के पात्र बन जाते हैं । आदिनाथ ऋषभदेव की स्तुति करते हुए आचार्य कहते हैं- मैं बहुत कम जानता हूँ । इतना कम जानता हूँ कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy