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बीकानेर के व्याख्यान]
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विद्वान् पंडित मेरे शब्दों का उपहास करेंगे । अर्थात् विद्वानों के सामने मैं हँसी का पात्र बनूंगा। वे कहेंगे कि मानतुंग कुछ न जानता हुआ भी स्तुति करने को तैयार हो गया ! लेकिन उन विद्वान् पंडितों की हँसी से मेरी कुछ भी हानि नहीं है, बल्कि लाभ ही होगा। हँसने वालों को भी लाभ होगा। वे मुझे हँसी का बनाकर अगर प्रसन्न हो लेंगे तो क्या हानि है ? अगर मैं किसी को रिझाने के लिए स्तुति करने का उद्यम करता होता तो कदाचित् मेरे लिए लज्जा की बात होती। मगर मेरी यह स्तुति न किसी को रिझाने के लिए है
और न किसी को बताने के लिए है। मेरे हृदय में परमात्मा के प्रति जो प्रबल प्रेरणा का उदय हुआ है, उसी का यह फल है कि मैं स्तुति कर रहा हूँ।
आचार्य कहते हैं-प्रभो ! मेरी यह स्तुति किसी वासना या तृष्णा की पूर्ति के लिए नहीं है। आपकी भक्ति की प्रेरणा मेरा मुँह बन्द नहीं रहने देती। उस प्रेरणा ने मुझे वाचाल बना दिया है। अब मुझसे विना बोले नहीं रहा जाता। इस पर अगर कोई हँसता है तो हँस ले । लेकिन भक्ति तो हो ही जायगी। ___ संसार में सर्वत्र स्वार्थ का साम्राज्य है । जो बोलता है सेो या तो किसी के दबाव में आकर या किसी आशा से ही बोलता है। क्या कोई उदाहरण ऐमा मिल सकता है कि
कोई विना खुशामद की भावना के सिर्फ निष्काम भक्ति से ही Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com