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________________ (४) अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहासधाम । त्वद्भक्तिरेव मुखरीकुरुते बलान्माम् ॥ यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौति । तच्चारुचूतकालिकानिकरैकहेतुः ॥६॥ अर्थ में अल्पज्ञ हूँ। शास्त्रवेत्ताओं के उपहास का पात्र हूँ, लेकिन आपकी भक्ति ही मुझे स्तुति करने के लिए जबर्दस्ती प्ररणा करती है । वसन्त ऋतु में कोयल जो मधुर शब्द करती है सो उसका कारण सुन्दर श्राम की मंजरियों का समूह ही है। ___ प्राचीन काल के प्राचार्य अपनी लघुता प्रकट करने में गुरुता समझते थे, लेकिन अाज के अधिकांश लोग अपनी लघुता बताने में लघुता समझते हैं। इन दोनों भावनाओं में बड़ा अन्तर है । जो परमात्मा नहीं बन गया है वह अपूर्ण है और जो अपूर्ण है उसमें लघुता अवश्य रहती है । जो अपनी लघुता को समझता है और उसे विना संकोच प्रकट कर देता है, समझना चाहिए कि वह अपनी लघुता को त्यागना चाहता है और पूर्णता प्राप्त करने का अमिलापी है। उसके परिणामों में इतनी सरलता होती है कि यह जैसा है वैसा ही अपने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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