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________________ २४२] [जवाहर-किरणावली भी कूद पड़ा हूँ। पार होना या न होना दूसरी बात है, लेकिन मेरा कर्त्तव्य यही है। मुझे यही उद्योग करना चाहिए । ___ लोग संसार-समुद्र में पड़े चक्कर लगा रहे हैं । कायरतापूर्वक रोते रोने से इस चक्कर से छुटकारा नहीं होगा। चक्कर से बाहर निकलने का उपाय उद्योग करना ही है और वह उद्योग योग्य दिशा में विवेकपूर्वक करना चाहिए। जैसे तूफ़ान के समय समुद्र को पार करने के लिए अधिक हाथ-पैर हिलाये जाते हैं, उसी प्रकार संकट के समय पुरुपार्थ न खोकर परमात्मा में चित्त को अधिक लगा देने से संकट से पार हो लकते हो। पुरुषार्थ करने से तो कुछ न कुछ फल निकल सकता है, मगर रोना तो अपने आपको डुबाना ही है। ___अधिकांश लोग परमात्मा का नाम इसलिए लेते हैं कि उन्हें उद्योग किये बिना ही धन मिल जाय । आलस्य में पड़े रहने पर भी धन मिल जाय तो वे समझते हैं कि भगवान् बड़े दयालु हैं ! लेकिन जब उद्योग करना पड़ता है तो भगवान् को भूल जाते हैं। मगर याद रक्खो, भगवान् कायरों का साथ नहीं देते। उद्योगी ही उनकी सहायता से सिद्धि प्राप्त करते है। शास्त्र में कहा है कि श्रावक लोग देवताओं की भी सहायता नहीं लेसे और कहते हैं हम क्या देवों से कर हैं ? जिनका जहाज समुद्र में डूबा जा रहा था, में भी नहीं घबराये तो आपको घबराने की क्या आवश्यShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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