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बीकानेर के व्याख्यान ]
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लोग कहते हैं-देवता को फूल चढ़ाओ तो वह प्रसन्न होंगे। लेकिन फूल का दूसरा नाम 'सुमन' है। 'सुमन' का अर्थ है-अच्छा मन-प्रशस्त विचार । तात्पर्य यह है कि मन को पवित्र रखने से देव प्रसन्न होते हैं।
महाजातक की बात से देव अत्यन्त प्रसन्न हुआ। उसने जहाज के साथ उसे किनारे लगा दिया। फिर महाजातक पर पुष्पवर्षा करके देव ने कहा-तुम्हारा सरीखा धीर और गंभीर दूसरा पुरुष तो क्या देव भी कहीं नहीं देखा । वास्तव में हम देवताओं की अपेक्षा मनुष्यों की शक्ति बड़ी है। देव, मनुष्य की उद्योग शक्ति के दास हैं।
श्री मानतुंगाचार्य कहते हैं-परमात्मा का गुणगान करना भुजाओं से समुद्र को पार करने के समान कठिन है। फिर कोई पूछे कि इस कठिन कार्य में उन्होंने क्यों हाथ डाला, तो मैं यही कहूँगा कि इस प्रश्न का उत्तर महाजातक से पूछो। स्तुतिकार कहते हैं-जैसे सेठ के लड़के (महाजातक) ने उत्तर दिया था कि चाहे पार होऊँ, या न होऊँ, उद्योग करना मेरा काम है। उद्योग से उपरत हो जाना कायरों को शोभा देता है। इसी प्रकार में सोचता हूँ कि शब्द चाहे जैसे हों, लगाना चाहिए उन्हें परमात्मा की स्तुति में ही परमात्मा के गुण-सागर के पार पहुंचना चाहे असंभव हो, फिर भी पहुँचने का उद्योग करना तो असंभव नहीं है। अतएव जिस प्रकार महाजातक पटिया लेकर कूद पड़ा था, उसी प्रकार मैं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com