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बीकानेर के व्याख्यान ]
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कता है? ____बहुतेरे ईर्षालु लोग है, जो दूसरों की ऋद्धि देखकर जलते हैं और सोचते हैं कि ऐसी ऋद्धि मेरे यहाँ क्यों नहीं है ? क्या ऋद्धिमान् के प्रति ईर्षा करने से आप ऋद्धिशाली हो जाएँगे? अथवा वह ऋद्धिशाली, ऋद्धिहीन हो जायगा? अगर आपकी ईर्षा इन दोनों में से कोई भी परिवर्तन नहीं कर सकती तो फिर उससे लाभ कहा है ? ईर्षा करने से लाभ तो कुछ भी नहीं होता, उलटी हानि होती है। ईर्षालु पुरुष अपने आपको व्यर्थ जलाता है और अपने विवेक का विनाश करता है। वास्तव में ऋद्धि का बीज पुरुषार्थ है। पुरुषार्थ करने वाले ही ऋद्धि के पात्र बनते हैं। ___ लोग सोचते हैं कि स्वर्ग के देवों को कुछ भी पुरुषार्थ नहीं करना पड़ता और फिर भी उन्हें सब प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं। क्या देवलोक में पालसियों का समूह इकट्ठा हुआ है ? नहीं। उन्होंने पहले ही बहुत उद्योग किया है और उसी उद्योग की बदौलत वे सुख भोग रहे हैं, ठीक उसी प्रकार जैसे युवावस्था में कमाई करने के बाद कोई वृद्धावस्था में उसका फल भोगता है । कहा भी है
देवलोक में अप्सरा रे,
प्रत्यक्ष जोड़े हाथ । क्या करणी किस काम से रे,
हुधा हमारा नाथ ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com