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________________ बीकानेर के व्याख्यान ] [१६१ लोग कहते हैं कि लड़की को क्या हुँडियां लिखनी हैं जो वह पढ़ाई करे ! परन्तु ब्राह्मी को क्या हुंडियां लिखनी थीं जो वह पढ़ी? ब्राह्मी तो ब्रह्मचारिणी ही रही थी। भगवान् को चिन्ता हुई कि मैं ऐसी दिव्य कन्या को दूसरे को सौंपूँगा और वह इसका नाथ बनेगा? ब्राह्मी अपने पिता की चिन्ता को समझ गई। उसने कहा-पिताजी, आप चिन्ता क्यों करते हैं ? हमारे रोम-रोम में शील बसा हुआ है । हमें सुसराल का नाम लेने में ही लज्जा मालूम होती है। ब्राह्मी अगर विद्या न पढ़ी होती तो क्या ऐसा कह सकती थी? 'नहीं!' बहुत से लोगों की धारणा है कि लिखने-पढ़ने से लड़कोंलड़कियों का बिगाड़ होता है। लेकिन विना पढ़े-लिखे लोग क्या बिगड़ते नहीं हैं ? नुकसान क्या पढे-लिखे ही करते हैं और विना पढ़-लिखे नहीं करते? ग्रंथकारों का कथन है कि झानी के द्वारा कोई भूल हो जाय तो वह जल्दी समझ जाता है । मगर मूर्ख तो नुकसान करके भी प्रायः नहीं समझता। भगवान् ने कहा है कि अगीतार्थ साधु चाहे सौ वर्ष का हो, फिर भी उसे गीतार्थ साधु की नेशाय में ही रहना चाहिए। पञ्चीस साधुओं में एक ही साधु अगर आचारांग और निशीथमूत्र का जानकार हो और वह शरीर त्याग दे, तो भादौं का महीना ही क्यों न हो, शेष चौवीस को विहार करके प्राचारांग और निशीथसूत्र के ज्ञाता मुनि की देखरेख में चले जाना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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