________________
१६०]
[जवाहर-किरणावली
लड़की की माता को पहले ही ब्रह्मचारिणी रहना उचित था। तब मोह होने का प्रश्न ही उपस्थित न होता। लेकिन जब मोहवश होकर सन्तान उत्पन्न की है तो लालन-पालन करके उल मोह का कर्ज भी चुकाना है। इसी कारण शास्त्र में मातापिता और सहायता करने वाले को उपकारी बतलाया है। भगवान् ने कहा है कि सन्तान का लालन-पालन करना अनुकम्पा है। .. सारांश यह है कि जो माता अपनी कन्या की आंखें फोड़ दे उसे आप माता नहीं वैरिन कहेंगे। लेकिन हृदय की आंखें फोड़ने वाले को आप क्या कहेंगे ? कन्याशिक्षा का विरोध करना. वैसा ही है जैसे अपनी संतति की खांखें फोड़ देने में कल्याण मानना । जो कन्याओं की शिक्षा का विरोध करते हैं वे उनकी शक्ति का घात करते हैं। किसी की शक्ति का घात करने का किसी को अधिकार नहीं है। हाँ, शिक्षा के साथ सत्संस्कारों का भी ध्यान रखना आवश्यक है। कन्याओं की शिक्षा की योजना करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि कन्याएँ शिक्षिता होने के साथ सुसंस्कारों से भी सम्पन्न बनें और पूर्वकालीन सतियों के चरित्र पढ़कर उनके पथ पर अग्र-, सर होने में ही अपना कल्याण मानें । यह बात तो बालकों की शिक्षा के संबंध में भी आवश्यक है। ऐसी दशा में कन्याओं की शिक्षा का विरोध करना उनके विकास में बाधा डालना
और उनकी शक्ति का नाश करना है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com