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________________ बीकानेर के व्याख्यान ] [ १५३ पुण्य रूपी पूंजी को भोगने वाले उसे घटने नहीं देने का विचार क्यों नहीं रखते ? आप पाखाने में शौच जाते हैं या नहीं ? 'जी हाँ !" कभी पाखाने को साफ भी करते हैं ? 'नहीं !' अगर एक दिन भी पाखाने की सफाई न की जाय तो क्या होगा ? ऐसे पाखाने को आप साफ नहीं करते और जो साफ करता है उसे आप क्या समझते हैं ? 'नीच !' फिर भी लोग दावा करते हैं कि हम ज्ञान और क्रिया को समझते हैं ! जो पाखाने को स्वच्छ बनाता है वह तो ऊँचा है और जो स्वच्छ करता है नीच है ! क्या यही ज्ञान और क्रिया का समझना कहलाता है ? ऐसी समझ को क्या कहा जाय ! कदाचित् आपका यह खयाल हो कि आप पुण्यवान् हैं और भंगी पुण्यहीन है। तो आप जब बालक थे तब आपकी माता ने क्या आपकी अशुचि न उठाई होगी ? क्या इस कारण आपकी माता पुण्यहीन हो गई ? और श्राप पुण्यवान् हुए ? मित्रो ! आपकी स्वतंत्रता लुट गई है, फिर भी अगर आप निरभिमानी बनें तो किसी न किसी रूप में दुनिया की सेवा में आ सकते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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