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[ जवाहर - किरणावली
संसार में सब से बड़ा काम भंगी का है। भंगी चाहें तो एक ही दिन में आपकी हवेली नरक की याद दिलाने लगे, . नगर नरक बन जाय और आप घबरन उठे । जो लोग स्वतंत्र हैं और जंगल में टट्टी जाते हैं वे ते। कदाचित् न भी घब रावें, मगर बड़े कहलाने वाले लोग सब से पहले घबरा जाएँगे । तात्पर्य यह है कि समाज के एक अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य को करके शांति कायम करने वालों के प्रति आपको कृतज्ञ होना चाहिए । अगर आपमें कृतज्ञता नहीं है तो कम से कम उन्हें घृणा और तिरस्कार की दृष्टि से तो मत देखिए ।
लोग अंधेरे में पड़े हुए हैं; इसलिए उन्हें उजेले में लाने के लिए मैं कहता हूँ कि जिस तरह मैं सब संतों से प्रेम करता हूँ. उसी तरह आप भी ऊँच-नीच का भेद छोड़ कर सब से प्रेम करो और उन्हें अपना सहायक समझे । आप हमेशा पढ़ते हैं
मित्ती मे सम्बभूएसु, बेरं मज्म न केणई ।
अर्थात् समस्त प्राणियों पर मेरा मैत्रीभाव है । मेरा किसी के प्रति वैरभाव नहीं है । इस पाठ के अनुसार नरक में पड़े हुए जीव क्या आपके मिंत्र नहीं हैं ? मगर ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि पास के जीवों को भूल जाओ और जो नरक में पड़े हैं, सिर्फ उन्हीं को मित्र मानने लगा । अगर रोटी बना कर देने वाले पास के मनुष्य को आप नीच मानेंगे तो नरक के जीवों को किस प्रकार मित्र समझ सकेंगे १
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