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________________ १५२ ] [जवाहर-किरणावली अगर आप खाने का अभिमान करते तो तो कीड़े-मकोड़े क्या आपसे अधिक अभिमान नहीं कर सकते ? मिष्टान्न में पड़ने वाले कीड़ अापको बुरे क्यों लगते हैं ? इसलिए कि मिष्टान्न उन्होंने बनाया नहीं और पा कैसे गये? लेकिन यही बात आप अपने विषय में भी सोचिये। आप स्वयं कीड़ों के समान बन रहे हैं या नहीं ? भाइयो और वहिनो ! आज की मेरी इस बात को याद रक्खो कि ज्ञानयुक्त क्रिया के विना और क्रियायुक्त ज्ञान के दिना धर्म और संसार को नहीं जान सकते । अतएव जो भी क्रिया सामने आवे उस पर विचार करो कि यह क्रिया मैंने की है या नहीं ? अगर नहीं की है तो उस पर में अमिमान कैसे कर सकता हूँ ! इस प्रकार विचार कर उस क्रिया का बदला देने की भी चिन्ता रक्खो। अगर आपने ऐसा नहीं किया तो सिर पर ऋण चढ़ा रहेगा। जिस प्रकार होटल में भोजन करने पर कीमत चुकानी पड़ती है, उसी प्रकार क्रिया का बदला देना भी उचित है। श्राज श्राप सीधा खाते हैं तो यह मत समझिए कि यह अापको यों ही मिल गया है। आप को जो प्राप्त होता है वह आपकी किसी क्रिया का फल है। इसे खाकर अगर आपने संसार और धर्म की सेवा न की तो समझ लीजिए कि आपने अपनी संचित पूंजी गँवा दी है। कोई भी विचारवान् व्यक्ति दीवालिया बनना पसंद नहीं करता। लेकिन पुण्य के विषय में यह बात क्यों लाती है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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