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________________ बीकानेर के व्याख्यान ] [१४७ इसी प्रकार दूसरों की सहायता से आपको भोजन, वस्त्र, अन्न आदि मिल जाय तो भी आप स्वतन्त्र नहीं हो सकते । बल्कि इस परतंत्रता के कारण आपको इन चीज़ों की क्रिया से घृणा हो गई है। आप भोजन और वस्त्र बनाने वाले को नीची निगाह से देखते हैं और उनका उपयोग करने वालों का आदर करते हैं ! आपके खयाल से कपड़ा बनाना नीच का काम है और पहनना ऊँच का काम है। मित्रो ! क्या यही समदृष्टि का लक्षण है ? आप जिस वस्तु का उपयोग करते हैं, उस वस्तु को बनाने आदि की क्रिया न जानने से अर्थात् स्वतन्त्रता को भूल जाने से आज धर्म में भी गुलामी हो रही है। आपमें से बहुतों को धर्म भी वही रुचिकर होगा जिसके सुनने पर क्रिया न करनी पड़े। मगर विचार करना चाहिए कि क्या यह उचित है ? मित्रो ! आपको स्वाधीनता का महत्त्व समझना चाहिए । कोरी बाते बनाकर संसार पर अपना आधिपत्य जमाने का प्रयत्न करना सचे शान का फल नहीं है। ज्ञानी वह है जो प्रत्येक बात पर गहराई से, तात्विक दृष्टि से विचार करता है । जैनशास्त्र में ऐसा एक भी बड़े आदमी का उदाहरण नहीं मिलेगा, जिसने दूसरों पर हुक्म चलाया हो और आप निरुयोगी होकर बैठा रहा हो। राजकुमार मेघ के उदाहरण को लीजिए । उसने जीवनोपयोगी बहत्तर कलाओं का अध्य. यन किया था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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