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________________ १४६ ] [ जवाहर - किरणावली • सावधान होकर देखें तो आपको पता चलेगा कि आपके सब काम पराधीन हैं। भोजन खाना तो आपमें से सभी को श्राता है, लेकिन भोजन बनाना कितनों को आता है ? आप नौकर के सहारे ही भोजन खाना जानते हैं। कदाचित् रसोइया ने अचानक जबाब दे दिया तो क्या होगा ? कहा जा सकता है कि ऐसी दशा में पत्नी भोजन बना देगी । परन्तु विदेश में, जहाँ पत्नी न हो, क्या करेंगे ? अथवा कल्पना करे। कि घर में पति-पत्नी दो ही हैं और पत्नी बीमार हो गई तब क्या होगा ? ऐसे समय में भोजन बनाकर कौन देगा ? मगर लोग तो इस भ्रम के शिकार हो रहे हैं कि हाथ से काम नहीं करेंगे तो पाप से बच जाएँगे ! मगर क्या यह पाप से छूटने का रास्ता है ? इस प्रकार की परतंत्रता से किसी बात में सिद्धि नहीं मिलती । सिद्धि प्राप्त करने का या पाप से छुटकारा पाने का मार्ग निराला है । भोजन के विषय में आपकी जैसी स्थिति है वैसी ही अन्न, वस्त्र आदि के विषय में भी है । ग्राप चाहते सभी कुछ हैं मगर स्वाधीन किसी भी चीज़ के लिए नहीं हैं । जैसे पंगु पड़े-पड़े भीख माँगा करने हैं, उसी प्रकार आप इन सब वस्तुओं की इच्छा रखते हैं। पंगु और अन्धे को माँगने पर कभी-कभी कोई दे भी देता है मगर उस देने से क्या उनमें स्वाधीनता श्रा जाती है ? 'नहीं !' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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